प्रस्तुतकर्ता
harminder singh
लेबल:
hindustan,
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ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
रवीश कुमार
सीखना क्यों चाहिए? हरमिन्दर के इस सवाल पर बूढ़ी काकी का जवाब सिम्पल था- ‘ताकि हम रूके न रह सकें’। काकी बोलती गई। ‘मैं इतना कहती हूं कि हम चलते रहें। ऐसा होगा तो जीवन आसान होगा। हमारा जीवन महत्वपूर्ण है’। नौजवान ब्लॉगर हरमिन्दर सिंह जब एक बूढ़ी काकी से बात कर रहे हैं तो बुढ़ापे की समझ हमारी खुलने लगती है।
हरमिन्दर का ब्लॉग दावा करता है कि यह वृद्धों का पहला ब्लॉग है। बुढ़ापे को करीब से जानने की कोशिश है यह ब्लॉग। अपने इस प्रयास में हरमिन्दर सिंह कितना सफल हो पाए हैं, यह जानने के लिए उनके ब्लॉग वृद्धग्राम पर जाना होगा। क्लिक कीजिए- http:// 100year. blogspot. com
हरमिन्दर और काकी का संवाद जारी है। काकी कहती हैं- आग को छूओगे नहीं तो पता कैसे चलेगा। अभ्यास जरूरी है। बिना जाने जीवन जिया नहीं जा सकता। यह सच है और जीवन का सच मृत्यु तक ही है, बाद का किसे पता है कि क्या है। तमाम तरह की राष्ट्रीय बहसों से बूढ़े लोगों को भगा दिया गया है। सब युवाओं की बातें कर रहे हैं। मनमोहन सिंह ने जब पहले दिन अपने मंत्रियों के साथ शपथ ली, तो सबकी उम्र जोड़ कर पूछा जाने लगा कि इसमें युवा कहां हैं।
इस मंत्रिमंडल की औसत आयु तो 67 साल है। उम्र को इस तरह उछाला गया जैसे ये बूढ़े लोग मुल्क का बेड़ा गर्क कर देंगे। युवा होना ही सब होना है। चालीस और पचास की उम्र के लोग पूरी कोशिश में लगे हैं कि बुढ़ापा टल जाए। सिर्फ युवाओं से उम्मीद है। बूढ़े लोगों से कुछ नहीं। हरमिन्दर को ठीक ही लगा होगा कि जब कोई बुजुर्गों से बात नहीं कर रहा है तो क्यों न वे पहल करें। हरमिन्दर सवाल करते हैं कि जीवन का सार होता है बुढ़ापा।
फिर क्यों हम बुढ़ापे से बचने की बात करते हैं? जबकि हम अच्छी तरह जानते हैं कि हमारा भी बुढ़ापा मुस्कुराता हुआ इंतजार कर रहा है।इन सब सवालों के बीच हरमिन्दर का अपनी बूढ़ी काकी से संवाद नहीं टूटता है। लिखते हैं कि काकी का जीवन नीरस था। फिर भी अपनों को देख कर उसकी आंखें छलक जाती हैं। पूछने पर कहती है- मेरे अपने यदि मेरे साथ होते हैं तो उससे बढ़कर खुशी कोई और नहीं होती। औलाद का अपनापन हर पालनहार की ख्वाहिश होती है। चाहत का दामन न टूटे इसलिए वे चाहते हैं कि सब उसकी आंखों के सामने रहें।
हरमिन्दर-काकी संवाद में इस बात को समझने की बहुत गुंजाइश है कि हम अपने बुजुर्गों से कितना जान सकते हैं। वृद्धाश्रम अब सिर्फ किसी सेठ की कृपा से नहीं चलता, बल्कि अब तो लोग अपने पैसे से वृद्धाÞाम के मॉडल पर दिल्ली मुंबई में बन रही हाउसिंग सोसायटियों में एक कमरे का मकान खरीदते हैं।परिवार से दूर रहने खुद ही चले जाते हैं। घर से निकालने की तमाम बहसों के बीच अब बाजार भी इसका फायदा उठा रहा है।
हरमिन्दर वृद्धों के साथ रिश्ता बनाने की बात करते हैं। कहते हैं कि फिल्मों में भी उपेक्षित हैं हमारे बुजुर्ग।
गानों में बुढ़ापे का जिक्र किसी उपहास की तरह आता है। क्या करूं राम, मुङो बुड्ढा मिल गया। उत्तर प्रदेश के गजरौला के रहने वाले ब्लॉगर हरमिन्दर हर वक्त बूढ़े लोगों में खोये रहते हैं। वे गजरौला के उन वृद्धों के सामाजिक योगदान की भी चर्चा करते हैं। किस तरह श्यौराज सिंह ने अपनी मेहनत से जनता इंटर कॉलेज को बेहतरीन बना दिया। अनुशासन के लिए यह कॉलेज जाना जाता है।
75 साल के महेंद्र जी वृद्धग्राम के लिए कविता लिखते हैं। मौत की शक्ल ढूंढ रहा हूं, मिलती ही नहीं, क्यों गुम है, वह खड़ी चौखट पर, यह समझता कोई नहीं है। हरमिन्दर की कवितायें भी वृद्धों की संवेदनशीलता के संसार से बन कर आती हैं। पल-पल पलकों के आंगन से, नहीं बहती मद्धिम धारा है, इस तट पर मैं खड़ा हूं, खत्म जहां किनारा है। हरमिन्दर धर्मशास्त्रों में भी खोजते हैं कि हमारे बुजुर्गों के बारे में क्या कहा गया है। जो नित्यप्रति वृद्धजनों तथा अभिवादन योग्य भद्रजनों की सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चार चीजें बढ़ती हैं।
धर्मशास्त्रों को कहना चाहिए था कि अच्छी जवानी के लिए इन्हीं चार चीजों की जरूरत होती है। यह ब्लॉग वृद्धों की सेवा करने वाला कोई एनजीओ या धर्माथ सेवार्थ संस्थान नहीं है। यह समझने की कोशिश करने का वाकई प्रयास लगता है। हरमिन्दर ढलती उम्र पर अच्छी कवितायें लिखते हैं। एक कविता की आखिरी पंक्ति है- अगर सरकती नहीं टांगे, तो इसमें बुराई क्या है, यही बुढ़ापा है, यही सच्चाई है।
ravish @ndtv.com
लेखक का ब्लॉग है naisadak. blogspot. com
हरमिन्दर का ब्लॉग दावा करता है कि यह वृद्धों का पहला ब्लॉग है। बुढ़ापे को करीब से जानने की कोशिश है यह ब्लॉग। अपने इस प्रयास में हरमिन्दर सिंह कितना सफल हो पाए हैं, यह जानने के लिए उनके ब्लॉग वृद्धग्राम पर जाना होगा। क्लिक कीजिए- http:// 100year. blogspot. com
हरमिन्दर और काकी का संवाद जारी है। काकी कहती हैं- आग को छूओगे नहीं तो पता कैसे चलेगा। अभ्यास जरूरी है। बिना जाने जीवन जिया नहीं जा सकता। यह सच है और जीवन का सच मृत्यु तक ही है, बाद का किसे पता है कि क्या है। तमाम तरह की राष्ट्रीय बहसों से बूढ़े लोगों को भगा दिया गया है। सब युवाओं की बातें कर रहे हैं। मनमोहन सिंह ने जब पहले दिन अपने मंत्रियों के साथ शपथ ली, तो सबकी उम्र जोड़ कर पूछा जाने लगा कि इसमें युवा कहां हैं।
इस मंत्रिमंडल की औसत आयु तो 67 साल है। उम्र को इस तरह उछाला गया जैसे ये बूढ़े लोग मुल्क का बेड़ा गर्क कर देंगे। युवा होना ही सब होना है। चालीस और पचास की उम्र के लोग पूरी कोशिश में लगे हैं कि बुढ़ापा टल जाए। सिर्फ युवाओं से उम्मीद है। बूढ़े लोगों से कुछ नहीं। हरमिन्दर को ठीक ही लगा होगा कि जब कोई बुजुर्गों से बात नहीं कर रहा है तो क्यों न वे पहल करें। हरमिन्दर सवाल करते हैं कि जीवन का सार होता है बुढ़ापा।
फिर क्यों हम बुढ़ापे से बचने की बात करते हैं? जबकि हम अच्छी तरह जानते हैं कि हमारा भी बुढ़ापा मुस्कुराता हुआ इंतजार कर रहा है।इन सब सवालों के बीच हरमिन्दर का अपनी बूढ़ी काकी से संवाद नहीं टूटता है। लिखते हैं कि काकी का जीवन नीरस था। फिर भी अपनों को देख कर उसकी आंखें छलक जाती हैं। पूछने पर कहती है- मेरे अपने यदि मेरे साथ होते हैं तो उससे बढ़कर खुशी कोई और नहीं होती। औलाद का अपनापन हर पालनहार की ख्वाहिश होती है। चाहत का दामन न टूटे इसलिए वे चाहते हैं कि सब उसकी आंखों के सामने रहें।
हरमिन्दर-काकी संवाद में इस बात को समझने की बहुत गुंजाइश है कि हम अपने बुजुर्गों से कितना जान सकते हैं। वृद्धाश्रम अब सिर्फ किसी सेठ की कृपा से नहीं चलता, बल्कि अब तो लोग अपने पैसे से वृद्धाÞाम के मॉडल पर दिल्ली मुंबई में बन रही हाउसिंग सोसायटियों में एक कमरे का मकान खरीदते हैं।परिवार से दूर रहने खुद ही चले जाते हैं। घर से निकालने की तमाम बहसों के बीच अब बाजार भी इसका फायदा उठा रहा है।
हरमिन्दर वृद्धों के साथ रिश्ता बनाने की बात करते हैं। कहते हैं कि फिल्मों में भी उपेक्षित हैं हमारे बुजुर्ग।
गानों में बुढ़ापे का जिक्र किसी उपहास की तरह आता है। क्या करूं राम, मुङो बुड्ढा मिल गया। उत्तर प्रदेश के गजरौला के रहने वाले ब्लॉगर हरमिन्दर हर वक्त बूढ़े लोगों में खोये रहते हैं। वे गजरौला के उन वृद्धों के सामाजिक योगदान की भी चर्चा करते हैं। किस तरह श्यौराज सिंह ने अपनी मेहनत से जनता इंटर कॉलेज को बेहतरीन बना दिया। अनुशासन के लिए यह कॉलेज जाना जाता है।
75 साल के महेंद्र जी वृद्धग्राम के लिए कविता लिखते हैं। मौत की शक्ल ढूंढ रहा हूं, मिलती ही नहीं, क्यों गुम है, वह खड़ी चौखट पर, यह समझता कोई नहीं है। हरमिन्दर की कवितायें भी वृद्धों की संवेदनशीलता के संसार से बन कर आती हैं। पल-पल पलकों के आंगन से, नहीं बहती मद्धिम धारा है, इस तट पर मैं खड़ा हूं, खत्म जहां किनारा है। हरमिन्दर धर्मशास्त्रों में भी खोजते हैं कि हमारे बुजुर्गों के बारे में क्या कहा गया है। जो नित्यप्रति वृद्धजनों तथा अभिवादन योग्य भद्रजनों की सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चार चीजें बढ़ती हैं।
धर्मशास्त्रों को कहना चाहिए था कि अच्छी जवानी के लिए इन्हीं चार चीजों की जरूरत होती है। यह ब्लॉग वृद्धों की सेवा करने वाला कोई एनजीओ या धर्माथ सेवार्थ संस्थान नहीं है। यह समझने की कोशिश करने का वाकई प्रयास लगता है। हरमिन्दर ढलती उम्र पर अच्छी कवितायें लिखते हैं। एक कविता की आखिरी पंक्ति है- अगर सरकती नहीं टांगे, तो इसमें बुराई क्या है, यही बुढ़ापा है, यही सच्चाई है।
ravish @ndtv.com
लेखक का ब्लॉग है naisadak. blogspot. com
इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
रवींद्र व्यास
webduina.com
एक राजकुमार बुढ़ापा देखकर जंगल की ओर निकल पड़ता है और जीवन में दुःखों को समझने की कोशिश में बुद्धत्व को अर्जित कर लेता है। उसके दर्शन की रोशनी दुनिया में चारों तरफ फैल कर पसरे अंधेरे को दूर करती है। करोड़ों लोग इस रोशनी में अपने जख्मों को सहलाते हुए दुःख के रेशों की बनावट-बुनावट को समझते हैं। इस दर्शन से जो करूणा के थरथराते हाथ निकलते हैं वे दुःख से ढहते और ध्वस्त होते मनुष्य का हाथ थाम लेते हैं।
ब्लॉग की दुनिया में एक ब्लॉग ऐसा है जो बुढ़ापे को समर्पित है। यहाँ भी बुढ़ापे को समझने की सहानुभूतिपूर्ण कोशिशें हैं। बिना किसी लफ्फाजी के, बिना किसी दयनीयता के लेकिन एक छोटे से दावे के साथ की यह बूढ़े लोगों का पहला ब्लॉग है। ब्लॉग का नाम है वृद्धग्राम और ब्लॉगर हैं हरमिन्दर सिंह ।
उनमें विनम्रता है, वे दूसरे सहयोग लेने की लिए भी तत्पर दिखाई देते हैं इसीलिए वे अपने इस ब्लॉग पर लिखते हैं कि स्व. मुंशी निर्मल सिंह जी, ये वे हैं जिनकी प्रेरणा से हमने यह ब्लॉग तैयार किया है। इनका आशीर्वाद सदा हमारे ऊपर रहे। वृद्धों के इस पहले ब्लॉग पर आप भी हमारा सहयोग करें। इस नेक कार्य के लिए हम गुजारिश करते हैं कि आप अपने बड़े-बूढ़ों, बुजुर्गों से संबंधित उनके सुख-दुख हमसे बाँटें। हम आपके आभारी रहेंगे। यह ब्लॉग उन लोगों को समर्पित है जो हमारे अपने हैं, लेकिन अब वे बूढ़े हो चुके हैं। उनका बुढ़ापा जीवन की उस सच्चाई को दर्शा रहा है जो कभी झुठलाई नहीं जा सकती। यह एक प्रयास भर है।
इस प्रयास में सिंह एक बहुत ही मार्मिक पोस्ट चिपकाते हैं- अब यादों का सहारा है। इसमें वे बूढ़ी काकी का जिक्र करते हैं। वह (काकी) कहती है- यादों को समेटने का वक्त आ गया है। बुढ़ापा चाहता है कि जिंदगी थमने से पहले यादों को फिर जीवित कर लो। शायद कुछ पल का सुकून मिल जाए। शायद कुछ पल पुराना जीवन जीकर थोड़ा हैरान खुद को किया जाए। कितना अच्छा हो, कितना मजेदार हो, कितना शानदार हो वह वक्त। मैं यादों की पोटली समय-समय पर खोलती रहती हूँ ताकि उन्हें बिखेर कर फिर से समेट सकूँ। यह वाकई जीवन को नए रंग से भर देता है। यहाँ बूढ़ी काकी को पढ़कर आप 'प्रेमचंद की बूढ़ी काकी' को याद कर सकते हैं।
आप यहाँ बूढ़ी काकी की बातों के जरिये बूढ़ों, बुढ़ापे के बारे में कई मार्मिक बातें पढ़ सकते हैं। जैसे यही की बुढ़ापा भी सुंदर होता है। इसमें काकी कहती हैं कि- मैंने काकी के सफेद बालों की ओर देखा। काकी ने कहा की काफी समय से ये ऐसे ही हैं। उनकी सफेदी उम्र का बखान कर रही थी। काकी का चेहरा भी उनके साथ अनोखा नहीं लग रहा था। असल में बुढ़ापा भी सुन्दर लगता है, फर्क सिर्फ नजरिए का होता है। इस पर काकी कहती है- यह हम सुनते आए हैं कि सुन्दरता देखने वालों की आँखों में होती है...। और जिसके आँखें न हों, वह.....?
तो यह ब्लॉग आपको वह आँख देता है जिसके जरिए आप बुढ़ापे को देख-जान सकें। वह नजरिया देता है, जिसके जरिए आप इसे समझ सकें। यह आपको वे थरथराते हाथ देने की कोशिश करता है कि जिसके जरिए आप थके-माँदे, हँसते-खिलखिलाते को थाम सकें। यह ब्लॉग आपको वह दिल देने कोशिश करता है जिसके जरिए आप उनके साथ कुछ पल बिताने का धैर्य और सहानुभूति हासिल कर सकें। और अंततः यह आपको वह विवेक भी देता है कि आप बिना दया के, बिना वृथा भावुकता के बुढ़ापे को संवेदनशील ढंग से महसूस कर सकें क्योंकि कभी न कभी वह आपके जीवन में दस्तक देने जरूर आएगा।
इस बुढ़ापे को समझने के लिए इस पते पर दस्तक दें- http://100year.blogspot.com और इस ब्लॉगर को बधाई दें कि जब सारी दुनिया युवा का गुणगान करते नहीं थकती यह एक थकती हुई दुनिया की, युवा की ऊर्जा के साथ बात करता है।
7:15 am | 0 Comments
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